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芦辺月例課題(令和2年6月号課題) |
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| 初級【漢字二体】 |
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| 楷書 |
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行書 |
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| 和光同塵(わこうどうじん) |
| ”光を和らげて塵に同ずる”と訓読みする。優れた才能を隠して俗世間に交わる。 |
| この句は中国道教の祖、老子の『道徳教』の第四章に「その光を和らげて其の塵 |
| に同ずる」とあるのに始まる。 |
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| 上級【漢字二体】 |
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| 行書 |
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草書 |
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| 山光澄我心(さんこう わが こころを すましむ) |
| 山々の美しい景色は私の心を清らかに澄ませる。(夢麟・清) |
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| 【細字】 |
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| 【臨書】 |
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| 日月観其(九成宮冷泉銘)「歐陽詢」 |
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敝虧日月 観其移山廻澗 窮泰極侈 以人従欲 |
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(読み)・・・日月(じつげつ)を 敝虧(へいき)す。その山を移し澗(たに)を廻(めぐ) |
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らし泰(たい)を窮め侈(し)を極め、人を以て欲に従わしむるを観れば・・・ |
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(意味)・・・日月を蔽(おお)いつ隠すほどです。 このように山に居を移し、澗(たに) |
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をめぐらし、贅沢を極め多くの人々を天子の欲望に従わせたことを思うと・・・ |
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| 師範漢字【漢字二体】 |
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| 行書 |
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草書 |
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| 過則勿憚改(過ちては則ち改むるにはばかることなかれ) |
| 子日、君子不重則不威。学則不固。主忠信。無友不如己者、過則勿憚改 |
| (読み)子日く、君子重かざれば則ち威あらず。学べば則ち個ならず。忠信を主とし己に |
| 如かざる者を友とすることなかれ。過ちては則ち改むるにはばかることなかれ |
| (意味)先生は言われた。「君子は重々しい雰囲気がなければ威厳がない。学問をすれば |
| 頭が柔軟になる。『忠』と『信』の心を大切にして、自分とレベルのあわない者を |
| 友としてはいけない。過ちがあったならそれを改めることをためらってはいけない。 |
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| (出典:『論語』学而篇第一の八) |
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| 【条幅】 |
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一般課題 |
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| 柳意故將花作雪 蝶情以夢為人 |
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| 柳意(りゅうい)故(ことさら)に花を将(もっ)て雪となし、蝶情 |
| 夢を以て人と為らんと欲す。 |
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| (大意) |
| 柳は故意に絮(わた)のような花を飛ばして雪のように見せ |
| 蝶の心は移り気で夢の中で人になろうとする。 |
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| (出典:張租詠(清)) |
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| *柳意…柳の心、気持ち、思い(大字源・角川) |
| 蝶が人になろうとする部分・・・古代中国の思想書「荘子」の”胡蝶の夢”の話から |
| 「昔、荘子は夢に蝶となり、自由に楽しく飛び回っていたが、目がさめる |
| とまぎれもなく荘子である。しかし荘子が夢に蝶となったのであろうか、 |
| 蝶が夢に荘子になったのだろうか・・・」という内容で荘子の思想を象徴す |
| る寓話をふまえるか? |
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師範課題 |
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| 人生有情涙沾臆 江水江花豈終極 |
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| 人生情あり 涙臆(むね)を沾(うるお)す。江水江花 |
| 豈(あに)終に極まらんや。 |
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| (大意) |
| 人に悲しみを感じる情のある以上、この江頭にたたず |
| めば、涙が胸を濡らさずにはおかない。無情の曲水の |
| 水、岸辺の花がこの景色をくり返して尽きることはない |
| であろうから |
| (出典:杜甫(盛唐)七言古詩 哀江頭) |
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| *哀江頭・・・曲江(川の名)のほとりで悲しむ。 |
| この部分(七言古詩の18句目と19句目)は有情の人生と無情の自然を思うとき、 |
| 深い悲しみにつつまれ、ハット現実にかえってうろたえるさまをうたっている。 |
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